नई दिल्ली। यह अत्यन्त हर्ष का विषय है कि इस वर्ष हमारा देश स्वतन्त्रता की 75वीं वर्षगाँठ मना रहा है। इन 75 वर्षों में भारत की सनातन संस्कृति की पुन: प्रतिष्ठा की दिशा में हम कितना आगे बढ़े हैं, यह विचारणीय प्रश्न है। इस प्रश्न की समीक्षा एवं भविष्य की दिशा तय करने के लिए भारत की सांस्कृतिक राजधानी काशी में चौथी ‘संस्कृति संसद ’ का आयोजन किया जा रहा है।
‘संस्कृति संसद’ संस्कृति, धर्म, अध्यात्म, कला, शिक्षा आंतरिक सुरक्षा, विदेश मामलों के जानकार आदि विषयों के विशेषज्ञों का मंच है। जिसमें संस्कृति से जुड़े विभिन्न विषयों पर चर्चा होती है एवं संवाद होता है। विशेषज्ञ अपना दृष्टिकोण देश के सामने रखते हैं ताकि जनमानस में इन विषयों पर समझ विकसित हो सके। पिछले तीन आयोजनों ने देश के अंदर सांस्कृतिक विमर्श की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
इसके पूर्व ‘संस्कृति संसद’ 2019 में कुंभ के अवसर पर प्रयागराज में आयोजित की गई थी। इस बार ‘संस्कृति संसद’ का आयोजन भारत की सांस्कृतिक राजधानी काशी में ‘अखिल भारतीय संत समिति’ एवं ‘श्री काशी विद्वत परिषद’ के मार्गदर्शन में आजादी की 75वीं वर्षगाँठ के विशिष्ट अवसर पर 12, 13 और 14 नवंबर 2021 को किया जा रहा है। ‘संस्कृति संसद’ में समस्त कार्यक्रम स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगाँठ के अनुरूप ही होंगे। ‘संस्कृति संसद’ में भारत के शीर्ष धर्माचार्य, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद, भारतीय जनता पार्टी के पदाधिकारी, देश-दुनिया के बौद्धिक नेतृत्वकर्ताओं के साथ साथ विभिन्न प्रांतों से लगभग 2000 युवा प्रतिभाग करेंगे।
12, 13 और 14 नवंबर को इस तीन दिवसीय आयेजन के दौरान अलग-अलग सत्रों में सनातन धर्म-संस्कृति, भारतीय संस्कृति की वैश्विक छाप, भारत की सांस्कृतिक विरासत, सीमाओं की सुरक्षा, राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा में आम नागरिकों की भूमिका, भारतीय संस्कृति पर दो हजार वर्षों तक हुए हमले, पूर्वोत्तर भारत की सांस्कृतिक चुनौतियाँ, संस्कृति की अविरल धारा माँ गंगा, राष्ट्रीय शिक्षा नीति, कला-संस्कृति, सशक्त राष्ट्र के निर्माण में युवाओं की भूमिका, मन्दिर सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक गतिविधि के केन्द्र कैसे बनें?, इतिहास, मन्दिरों का प्रबन्धन, शिक्षण एवं सांस्कृतिक संस्थानों के संचालन एवं क़ानूनों में सुधार जैसे अहम विषयों पर संवाद होगा।
कार्यक्रम में ऐसे कई महानुभाव जो भारत भूमि में और भारतीय धर्म में नहीं जन्मे हैं लेकिन आज पूरी तरह से भारतीय धर्म और संस्कृति के प्रति समर्पित हैं और वैश्विक स्तर पर भारतीय संस्कृति के ब्रांड एम्बेसडर हैं, ऐसे सभी महानुभावों का सम्मान 12 नवंबर को द्वितीय सत्र में किया जाएगा।
‘स्वतंत्रता के आंदोलन में काशी की भूमिका’ इस विषय पर राष्ट्रीय चित्रकारों की एक कार्यशाला का आयोजन भी 6 से 11 नवंबर के बीच में किया जाएगा। स्वतंत्रता के आंदोलन में काशी के योगदान को पहली बार चित्रों के रूप में उकेरा जाएगा। जिसमें तैयार किए गए चित्रों की प्रदर्शनी भी संस्कृति संसद के दौरान लगायी जाएगी।
संस्कृति संसद में संस्कृत कवियों के एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन भी 14 नवंबर की शाम को किया जाएगा। जिसमें केवल संस्कृत कविताओं का पाठ किया जाएगा। भारत एवं जापान की मैत्री का प्रतीक ‘रुद्राक्ष अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं सम्मेलन केन्द्र’ संस्कृति संसद का आयोजन स्थल है।
गौरतलब है कि गंगा महासभा और दैनिक जागरण के द्वारा भारतीय संस्कृति के प्रख्यात चिंतक और दैनिक जागरण के पूर्व प्रधान सम्पादक स्वर्गीय नरेंद्र मोहन की पुण्यस्मृति में प्रत्येक दो वर्ष पर संस्कृति संसद आयोजित की जाती है। विगत तीन सफल आयोजनों के साथ ‘संस्कृति संसद’ एक परंपरा का स्वरूप ले चुकी है।
पत्रकार वार्ता को अखिल भारतीय सन्त समिति के महामंत्री स्वामी जीतेन्द्रानन्द सरस्वती, श्रीकाशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी, आयोजन समिति की अध्यक्ष एवं राज्यसभा सांसद रूपा गांगुली, उपाध्यक्ष रेशमा सिंह, संस्कृति संसद के संयोजक गोविन्द शर्मा ने सम्बोधित किया। पत्रकार वार्ता में गंगा महासभा के राष्ट्रीय मंत्री राजेश राय ‘नन्हें’ एवं अपरमित सिंह उपस्थित रहे।