बिलकिस बानो केस में सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, गुजरात सरकार को झटका

गुजरात के बिलकिस बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है.सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों को जल्द रिहाई देने के फैसले को रद्द कर दिया है पिछले साल ही गुजरात सरकार ने सभी 11 दोषियों को समयपूर्व रिहाई दी थी.

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बिलकिस बानो केस
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गुजरात के बिलकिस बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है.सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों को जल्द रिहाई देने के फैसले को रद्द कर दिया है पिछले साल ही गुजरात सरकार ने सभी 11 दोषियों को समयपूर्व रिहाई दी थी. साल 2002 में जब बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप की यह घटना हुई थी, तब वो 21 साल की थीं और पांच महीने की गर्भवती थीं।भीड़ ने बिलकिस के परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी थी मरने वालों में तीन साल की बेटी भी शामिल थी। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के बिलकिस बानो केस में सभी 11 दोषियों की सजा माफी को रद्द कर दिया है.

SC ने गुजरात सरकार के फैसले को पलटा है. इसके साथ ही गुजरात सरकार को फटकार लगाई है और कहा, यह फैक्ट के नाम पर SC के साथ फ्रॉड किया गया है. हाईकोर्ट की टिप्पणियां छिपाई गईं. गुजरात सरकार को माफी देने का भी अधिकार नहीं था। यह अधिकार सिर्फ महाराष्ट्र सरकार के पास था. भले घटना गुजरात में हुई, लेकिन इस मामले में पूरी सुनवाई महाराष्ट्र में हुई है. अब सभी 11 दोषियों को दो हफ्ते के अंदर सरेंडर करना होगा. उन्हें फिर से जेल भेजा जाएगा।

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सोमवार यानी 8 जनवरी 2023 को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने इस मामले में फैसला सुनाया है बेंच ने लगातार 11 दिन तक सुनवाई की थी और बीते साल 12 अक्टूबर को मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान केंद्र और गुजरात सरकार ने दोषियों की सजा माफ करने से जुड़े ओरिजिनल रिकॉर्ड पेश किए और अपने अपने तर्क रखे थे. गुजरात सरकार ने दोषियों की सजा माफ करने के फैसले को सही ठहराया था। कई दलीलें और पिछले फैसलों का हवाला दिया था लेकिन उम्रकैद की सजा में समय से पहले दोषियों की रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया था कोर्ट का कहना था कि ये साफ होना चाहिए कि दोषी कैसे माफी के योग्य पाए गए तथा गुजरात सरकार से जवाब भी मांगा था।

संबंधित न्याय के प्रक्रिया से मैं काफी खुश हूं आशा करता हूं कि ये प्रक्रिया भारतीय न्याय व्यवस्था में लोगों की आस्था को और मजबूत करेगा । लेकिन मैं  कुछ घटनाओं का जिक्र करना चाहता हूं, 11जून 1990 का वो दिन जब गिरजा टिक्कू अपनी सैलरी लेने घाटी जाती हैं तब उनके साथ न सिर्फ गैंगरेप किया जाता है बल्कि उनको आरा मशीन से काट दिया जाता है। उसके अलावा 14 अप्रैल 1990 को सरला भट्ट अपने मेडिकल इंस्टीट्यूट में रहती हैं जहां से उनको किडनैप कर उनके साथ सामूहिक रेप करके उनके शरीर को कई टुकड़ों में काटकर 19 अप्रैल 1990 को श्रीनगर के डाउनटाउन में फेंक दिया जाता है । साथ हीं नैना साहनी का तंदूर कांड शायद हीं कोई भूल पाए.3 जुलाई 1995 की काली रात की  घटना आज भी रुह कांपा देती है कैसे नैना साहनी को तंदूर के माध्यम से जलाया गया। उसके आरोपी सुशील को विगत कुछ साल पहले कैसे जल्द रिहा करने की बात कही गई जो काफी शर्मनाक थी । भारतीय न्याय व्यवस्था में ये तो रेयर ऑफ द रेयरेस्ट क्राइम की संज्ञा में आता है। लेकिन कश्मीर से कन्याकुमारी तक कोई उनके लिए आवाज नहीं उठाया। न्याय की व्यवस्था भी वही थी भारतीय संविधान भी वही था मानवाधिकार भी वही था लेकिन किसी ने भी इस घटना पर आवाज नहीं उठाई। उच्चतम न्यायालय के इस फैसले पर वो लोग भी खुश हैं जो न्यायालय के बाकी फैसलों का हमेशा से विरोध करते आए हैं।

बुद्धिजीवियों को ये सोचना चाहिए कि न्यायालय पक्षपात नहीं करता। इनका बस ये है की “मीठा मीठा गप गप कड़वा कड़वा थू थू” ये लोग अपनी जमात के आधार पर फैसलों की स्वागत या भर्त्सना करते हैं। खैर उच्चतम न्यायालय के इस फैसले पर एक बार फिर हम खुशी जताते हैं साथ हीं एक अनुरोध भी करते हैं की न्याय की इस प्रक्रिया को और तीव्र करें तथा सामाजिक न्याय के अंतर्गत सभी महिला दुष्कर्म को अपनी प्रथम प्राथमिकता में लेते हुए उस पर कार्यवाही करें।
(ये लेखक के स्वयं के विचार है )

     रौशन पाण्डेय
( परास्नातक जनसंचार )

महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय

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