तेजस्वी के रणनीति से राजद को मिल सकती है संसद में एंट्री?

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तेजस्वी के रणनीति

बाकेबिहारी पाठक। भारतीय राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाले बिहार में लोकसभा के तीन चरणों का चुनाव सम्पन्न हो चुका है। इस बार पहले चरण में सिर्फ 48%, दुसरे चरण में 58% और तीसरे चरण में 59% के करीब मतदान हुए हैं। इस निराशाजनक प्रदर्शन का वजह मतदाताओं में चुनावी मुद्दों को पूरा ना करने का रोष या रोजगार के लिए दूसरे प्रदेशों में पलायन हो सकता है। पिछले कुछ चुनावों पर दृष्टि डालें तो बिहार के मतदाता मुद्दे, वादे और भविष्य को मद्देनजर रख मतदान कर रहे हैं।

यह भी एक वजह हो सकता है कि अविभाजित बिहार के 54 सीटों में 17 पर विजय के साथ अपने दौर की शुरआत करने वाली राजद 2019 लोकसभा से सीट विहीन पार्टी है, लेकिन इस बार तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद को जीत की काफी उम्मीदें लगी हैं, जो उनके धार्मिक सामंजस्य और जातीय समीकरण पर भी निर्भर करता है। गत वर्षों में चुनाव प्रचार का तरीका बदला है। इंटरनेट और सोशल मीडिया के आ जाने से राजनीतिक पार्टियों का जनसंपर्क करने और अपने मुद्दों को जनता के बीच रखने का प्रभावी जरिया मिला है, साथ ही मतदाताओं की राजनीतिक समझ भी बढ़ी हैं। मतदाता अपने जरूरतों और हित-अहित को देखकर मतदान कर रहे हैं।

1997 में जनता दल से अलग होकर ‘राष्ट्रीय जनता दल’ के नाम से पार्टी बनाकर लालू यादव ने 1998 के लोकसभा के चुनाव से पदार्पण किया था। जिसमें 54 सीटों में 43 सीटों पर चुनाव लड़ 17 सीटों पर विजय प्राप्त कर संसद में भागीदारी निभाई थी। इसके बाद झारखंड के अलग होने के पश्चात् 2004 में बिहार में पहली बार 40 सीटों पर लोकसभा चुनाव हुआ तो 22 सीटें जीतकर राजद ने धमाकेदार प्रदर्शन किया, लेकिन 2004 में 55% सीट जीतने वाली राजद की बत्ती 2019 में जीरो सीट के साथ गुल हो गई।

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1990 विधानसभा में 37% सीटों के साथ चुनाव जीत कर लालू ने बिहार की राजनीति में नया दौर लाया और पहली बार मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लिया। अपने 20 साल के राजनीतिक करियर में राजद को 2010 बिहार विधानसभा चुनाव में सबसे कम 22 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। हालांकि 2015 में नीतीश कुमार के जदयू के साथ गठबंधन कर 80 सीटों के साथ जोरदार वापसी कर फिर से एक बार बिहार की जनता का विश्वास जीतने का उम्मीद लगाया, लेकिन 2017 में जदयू ने वापस NDA के साथ गठबंधन कर लिया और 2019 लोकसभा चुनाव विपक्ष में लड़ने से राजद को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा और इनके राजनीतिक इतिहास में पहली बार लोकसभा चुनाव में खाता तक नही खुल पाया।

2014 में महज दो सीटें जीतने वाली जदयू 2019 में बेहतर प्रदर्शन करते हुए 16 सीटों तक पहुंच गई। 2020 विधानसभा NDA के साथ लड़ कर जदयू ने 45 सीटें जीती और राजद 79 सीटों के साथ बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बन गई। 2022 में विपक्ष के भूमिका से सत्तापक्ष में आई राजद 2024 लोकसभा में बेहतर प्रदर्शन की तैयारी कर ही रही थी कि जनवरी 2024 में जदयू ने इनके साथ गठबंधन तोड़ के वापस NDA के साथ सरकार बना कर राजद की चिंता बढ़ा दी। जिसका भारी खामियाजा इनको भुगतना पड़ सकता है। कयास लगाया जा सकता है कि जदयू के साथ गठबंधन टूटने से राजद को 2024 लोकसभा में भारी नुकसान हो सकता है।

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महगठबंधन में राजद अपने सीटों को जदयू के साथ साझा करके लड़ती तो उन सीटों में राजद की बढ़ोतरी की उम्मीद थी। 2014 में दो सीटों से 2019 में 16 सीटों पर जदयू के जितने से राजद को 2024 में इनके साथ लड़ने पर सीधा फायदा हो सकता था। 2009 से देखा गया है कि बिहार में NDA के साथ लोकसभा चुनाव लड़ने वाली पार्टियों का प्रदर्शन उम्दा रहा है। 2009 और 2019 में NDA के साथ 20 और 16 सीटों पर विजयी रहने वाली जदयू 2014 में इसके खिलाफ लड़ कर महज दो सीटों पर ही सिमट गई थी।

2024 में जदयू वापस NDA के साथ चुनाव लड़ रही है तो राजद को काफी मेहनत करनी पड़ेगी। गत दो लोकसभा चुनाव भी देखें तो 2014 और 2009 में राजद का प्रदर्शन चार-चार सीटों के साथ निराशाजनक ही रहा है। लालू यादव अपने करियर में जनता के साथ अपनत्व वाले भाषण से हमेशा विधानसभा चुनाव में शीर्ष पर रहा करते है, लेकिन पिछले तीन लोकसभा चुनावों पर नजर डालें तो लालू यादव बिहार की जनता को रिझाने में नाकामयाब रहे हैं। इसका मुख्य वजह मौजूदा सरकार की मजबूत चुनावी रणनीति हो सकती है। करियर के शुरुआती दौर से ही अपने भाषण से देश के राजनीतिज्ञों का ध्यान अपनी तरफ खींचने वाले लालू अपने अंतिम दौर में फीके पड़ते गए है, लेकिन तेजस्वी यादव के राजद के मुखिया बनने के बाद पार्टी तेजी से उभर कर ऊपर आई हैं।

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2010 के विधानसभा में महज 22 सीटों के साथ साधारण प्रदर्शन के बाद 2015 और 2020 में तेजस्वी के नेतृत्व में लड़ा जिसका असर इन दो विधानसभा चुनावों में साफ देखने को मिला है। 2024 लोकसभा चुनाव में राजद की जीत तेजस्वी की रणनीति और सहयोगी दलों के साथ ताल-मेल पर निर्भर करता है। पहले चरण के इतना कम और बाकी दो चरण के साधारण प्रतिशत मतदान भी इनके लिए चिंताजनक विषय है। करीब सोलह महीनों के उपमुख्यमंत्री के कार्यकाल में विकास और रोजगार के दावें जो तजेस्वी कर रहे हैं इसका फायदा भी उनको चुनाव में मिल सकता है। राजद का नए गठबंधन में कांग्रेस और बाकी सहयोगी दलों के साथ सीट बंटवारा भी जीत में अहम भूमिका निभा सकता है।